Friday, August 16, 2019

मन छुने कुरो

आखें तालाब नहीं, फिर भी, भर आती है
दुश्मनी बीज नहीं, फिर भी, बोई जाती है

होठ कपड़ा नहीं, फिर भी, सिल जाते है
किस्मत सखी नहीं, फिर भी, रूठ जाती है

बुद्धि लोहा नहीं, फिर भी, ज़ंग लग जाती है है आत्मसम्मान शरीर नहीं, फिर भी, घायल हो जाता है इंसान मौसम नहीं, फिर भी, बदल जाता है।
अज्ञात